बाल एवं युवा साहित्य >> विक्रम-बेताल के रोमांचक किस्से विक्रम-बेताल के रोमांचक किस्सेसंदीप गुप्ता
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विक्रम-वेताल की कहानियाँ "उड़ने वाला रथ" तथा अन्य हैरतअंगेज किस्से।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
विक्रम ने ठान रखी थी वह बेताल को साधु के पास ले जाकर ही दम लेगा। अतः उसने इस बार भी बेताल को वश में किया और कन्धे पर लाद कर चल दिया।
इस बार बेताल ने यह कथा सुनाई...
उज्जैन नगरी में वासुदेव नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसका एक पुत्र था - गुणाकर। वासुदेव ने अपने पुत्र को पढ़ा-लिखा कर एक योग्य शास्त्री बना दिया था, किन्तु गुणाकर को यह सब रास न आया क्योंकि दुर्व्यसनों ने उसे चारों ओर से घेर रखा था। वासुदेव ने अपने पुत्र को सही राह पर लाने का बहुत प्रयत्न किया, किन्तु गुणाकर तो संचित धन को लुटाने पर तुला था। - "असफल तपस्या"
एक बार पुनः विक्रम ने वृक्ष पर उल्टे लटके बेताल को नीचे उतारा और उसको पीठ पर लाद कर साधु के पास चल दिया। विक्रम का बोझ हल्का करने के लिए बेताल ने फिर एक नयी कहानी सुनानी प्रारम्भ की...
मिथिला नगर में गुणाधीश नामक राजा का शासन था। एक बार महल में चिरम देव नामक एक युवक आया। उसकी अभिलाषा थी कि वह राजा की सेवा में रहे किन्तु दरबारियों ने उसे राजा से मिलने नहीं दिया। वह बहुत परेशान हुआ, उसे समझ ही नहीं आया कि क्या करें। वह प्रतिदिन महल में आता, दरबारियों के समक्ष गिड़गिड़ाता, धन का लालच देता किन्तु बात न बनती। - "स्वामिभक्त सेवक"
ऐसी ही अन्य मनोरंजक व शिक्षाप्रद कहानियों का अद्वितीय संकलन
इस बार बेताल ने यह कथा सुनाई...
उज्जैन नगरी में वासुदेव नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसका एक पुत्र था - गुणाकर। वासुदेव ने अपने पुत्र को पढ़ा-लिखा कर एक योग्य शास्त्री बना दिया था, किन्तु गुणाकर को यह सब रास न आया क्योंकि दुर्व्यसनों ने उसे चारों ओर से घेर रखा था। वासुदेव ने अपने पुत्र को सही राह पर लाने का बहुत प्रयत्न किया, किन्तु गुणाकर तो संचित धन को लुटाने पर तुला था। - "असफल तपस्या"
एक बार पुनः विक्रम ने वृक्ष पर उल्टे लटके बेताल को नीचे उतारा और उसको पीठ पर लाद कर साधु के पास चल दिया। विक्रम का बोझ हल्का करने के लिए बेताल ने फिर एक नयी कहानी सुनानी प्रारम्भ की...
मिथिला नगर में गुणाधीश नामक राजा का शासन था। एक बार महल में चिरम देव नामक एक युवक आया। उसकी अभिलाषा थी कि वह राजा की सेवा में रहे किन्तु दरबारियों ने उसे राजा से मिलने नहीं दिया। वह बहुत परेशान हुआ, उसे समझ ही नहीं आया कि क्या करें। वह प्रतिदिन महल में आता, दरबारियों के समक्ष गिड़गिड़ाता, धन का लालच देता किन्तु बात न बनती। - "स्वामिभक्त सेवक"
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